रविवार, 26 मार्च 2017

चलो ,स्टेशन आ गया

सुनो ssन!.....
हूंsss सोने दो...
मत सुनो,कुम्भकर्ण के वशंज...कहते ,पैर पटकते सौम्या उठकर बाल्कनी में आकर रेलिंग  के सहारे खड़ी हो स्माइली के आकर के चाँद को देख मुस्कुरा उठी। ....आँखों के कोर नमी सहेजे चाँद को निहारते रहे और वह यादों की बस्ती में खोने लगी।....पिता माँ के उभरे पेट पर कान लगाए अजन्मे बच्चे को पुचकार रहे थे। वह भी उनकी नकल करती माँ के पेट पर चुम्बन दे बड़े प्यार से कहती..मेरा छोटा सा भाई कब आएगा पापा? पिता उसे गोद में उठा घूमाते और कहते जल्दी ही माँ अस्पताल से लेकर आएगी।
स्नेह की रसभरी डोर जिसे सौम्या बार -बार थामने की कोशिश करती ...अतित के पन्ने टटोलती ,उतनी ही बेचैनी बढ़ती जाती।पेट में शिशु करवटें बदलने लगा था....वह चाहती अमित को बताए कि उनका बच्चा अब महसूस कर सकता है उनका स्पर्श।वह चाहती कि पति पेट में चलते हुए बच्चे से बतियाए ...पर sss अफसोस कि उसे अपनी भागती दुनिया से इतर सब कुछ बस निबटाउ काम लगता।अॉफिस से लौट लैपटाप ले बैठ जाता....टोकने पर अॉफिस का जरुरी काम कह नाराजगी जताता।वहाँ से निबट मोबाईल ले बैठ जाता ...सौम्या के नाराज होने पर छत पर चला जाता।ये एक लाईलाज बीमारी बनती  जा रहा थी।सोते ,बैठते ,खाते यहाँ तक कि बाथरुम में भी मोबाईल साथ रहता। सौम्या की उब बढ़ती जा रही थी....।स्कूल से लौट वह अकेली अपनी दुनिया में इस कदर उबन महसूसने लगी थी की घर में दम घूटने लगा ।भाग कर कभी पार्क में जाकर बैठती...कभी बाल्कनी तो कभी छत पर जाकर घण्टों सामने पार्क में खेलते बच्चों को निहारती।एक शूकुन भरी मुस्कान चेहरे पर फैल जाती और पेट पर हाथ रख वह घण्टों मन की सुकोमल बातें अजन्में बच्चे से करती छत पर टहलती रहती।एक दिन पड़ोसी सान्याल ने अमित से कहा भी....यार अमित!..भाभीजी की तबियत तो ठीक है न?
क्यों ,क्या हुआ उसे ?भली चंगी तो है।...उल्टे उसने ही सौ सवाल दाग दिए।
बुरा न मानना...लेकिन उनकी मानसिक हालत ठीक नहीं लगती,...मानषी कह रही थी की अकेले घण्टों छत पर बड़बडाती रहतीं हैं।टेक केयर यार!...किसी अच्छे .....
अभी उसकी बात पूरी भी नहीं हुई थी की अमित दनदनाता हुआ लिफ्ट की ओर भागा।दरवाजे पर लगातार दस्तक सुन सौम्या ने हड़बडा कर दरवाजा खोला...अमित का चेहरा गुस्से से लाल देख सहम गयी।
क्या हुआ,किसी से लड़ाई हो गयी?....वह डरी थी ... अमित अपना बैग सोफे पर पटक उबल पड़ा...बिल्ड़िंग वाले तुम्हें पागल कहने लगें हैं...समझी sssss
सुबह -सुबह सान्याल ने मूड खराब कर दिया..
सौम्या आवाक उसका मुँह ताकती रही। हुवा क्या?धीरे से पूछा।वह सीधे उसके मुँह के पास आकर खड़ा हो गया...अच्छा ये बताओ ,अकेले में छत पर क्या बड़बड़ाती होsss
उसकी आवाज बहुत ऊँची थी....इतनी की मन की सुकोमल परतें चटक जाऐं।वह रोते हुए बस इतना ही पेट पर हाथ रख कह सकी....बेबी सेss...और फूट -फूट कर रोने लगी। अमित अब भी चिल्ला रहा था...बेवकूफ ....अपनी ये सेण्टी हरकतें घर में किया करो।सोसाइटी में मेरी बैण्ड मत बजवाओ...प्लीज ।वह हाथ जोड़ कर गिड़गिड़ा रहा था।आगे वह कुछ और कहता कि तभी मोबाईल बज उठा....सॉरी सर ...बस ssबस पहुँच रहा हूँ,...फोन पर कहते वह बैग उठा कर फूर्ती से बाहर निकल गया। 
                    घण्टो रोने के बाद सौम्या संयत हुई....सिर भारी हो गया था । मन घबड़ा रहा था ...वह किसी से कुछ कहना चाहती थी।दरवाजा खोल बाहर निकली...सामने की पड़ोसन अपना कुत्ता ले टहलाने ले जा रही थीं...हाय सौम्या! कहती मुस्कुराकर निकल गयीं।अगल बगल के फ्लैट से बच्चों के रोने की आवाज आ रही थी....माँ -बाप नौकरी पर निकल चुके थे ,आया टी.बी .चला कर बैठी अपने में मगन..उसकी घबराहट बढने लगी...दरवाजा लॉक कर लिफ्ट की ओर तेज कदमों से बढ़ गयी.....लिफ्ट की दीवार से सिर टिका आँख मूंद लिया....और जैसे तेज बवंडर उठा हो....लोग बेतहाशा भाग रहे थे....सरपट,....वह कुछ चेहरे पहचानती थी...पकड़ना चाहा और हाथ फिसल जा रहा था।अचानक एक झटके से लिफ्ट रुकी..सिक्योरिटी गॉड ने आवाज दी...मैड़म!
वह जेसे नींद से जागी हो,...जागी। बाहर निकल वह पार्क में एक पेड़ की छाया में आ बैठी। सामने कुछ घरों की आया बच्चों को झूला झूला रही थीं...कुछ गेंद खेल रहे थे।वह खेलते बच्चों को मुग्ध देख रही थी ....अचानक एक बच्चा गिर गया....घुटना छिल गया .बच्चा मम्माssss मम्मा कह रोए जा रहा था...उसकी आँखें भर आईं...आया ने उठा कर चुप करा वापस खेलने भेज दूसरी से बतियाने लगी।
               जाड़े की गुनगुनी धूप में खिले रंग -बिरंगे फूलों पर मंडराती तितलियों को देख सौम्या मन्द मुस्कान सहेजती कभी बच्चों को देखती ,कभी तितलियों को...चारों तरफ रंग और हरितिमा के बीच बच्चों की मोहक मासूम हँसी का कलरव ।वह जैसे परियों के देश में जा पहुँची...एक नन्हा फरिश्ता उसकी अंगुली थाम कर चल पड़ा हो फूलों की वादियों में.
सौम्याssss...अरे यार! तुम यहाँ बैठी हो और मैं पूरी बिल्ड़िंग में पागलों की तरह खोजता फिर रहा हूँ।अमित नाराज हो रहा था...उसकी आवाज में चिन्ता साफ झलक रही थी।तुम इतनी जल्दी लौट आए? 
हाँ,..मैंने आज अपनी बेगम के लिए छुट्टी ले ली है।हाथ पकड़ कर उठाते हुए...चलो जल्दी रेडी हो जाओ ...पिक्चर चलते हैं। जेब से टिकट निकाल कर दिखाते हुए।वह मुस्कुराकर उठ गयी। सौम्या का मन नहीं था पर अमित के अनुनय पर बेमन से तैयार हो चल पड़ी ।जानती थी आज अमित उसे लेकर परेशान है इस लिए ये सब कर अपनी गिल्टी दूर करना चाहता है।दोनों दिल्ली की भागती सड़कों से गुजरते मैट्रो स्टेशन पहुँचे। कार पार्किंग में लगा टिकट ले मैट्रो की प्रतीक्षा करने लगे...आज अमित गलती से भी मोबाईल हाथ में नहीं ले रहा था।सौम्या को देख कर खुशी हुई कि शायद अमित कुछ कुछ प्राब्लम समझ रहा है।सामने सर्रssss की आवाज के साथ मैट्रो रुकी ...एक जत्था निकला ,एक दाखिल हुआ। अन्दर भीड़ थी....एक लड़की सौम्या के उभरे पेट को देख कर अपनी सीट छोड़ उसे हाथ पकड़ बिठा दिया। सौम्या ने चारों तरफ नज़र दौड़ाई...लड़के, लड़कियाँ ,बूढ़े ,जवान से लेकर हाथों में गट्ठर लिए फेरी खोमचे वाले तक हाथ में मोबाईल लिए व्यस्त थे।उसे घुटन होने लगी...उसने अमित की तरफ देखा...बहुत देर से धैर्य रखे अमित भी हाथ में मोबाईल लिए टिपटाप करने में व्यस्त था।उसके चेहरे पर तरह तरह के भाव आ जा रहे थे..उसने नज़रें फेर ली ।बगल में बैठी लड़की गूगल पर ब्यूटी टिप्स सर्च कर रही थी।दूसरी शायद अपने प्रेमी से चैटिंग कर रही थी..रह-  रह कर चेहरे पर लाली फैल जा रही थी। सौम्या चारों तरफ बार -बार देखती और समझने की कोशिश करती ...जब सारी कोशिशें बेकार हो गयीं ,अचानक उसने अपना हाथ पर्स में डाल अपना फोन निकाल नेट आन कर गूगल पर टाईप किया....बेबी केयर टिप्स...एक एक कर ढ़ेर सारे  बुक ,विडियो के लिंक उभरने लगे।उसकी आँखें चमक उठीं...एक -एक को खोल देखने लगी।प्यारे -प्यारे बच्चों की मनभावन तस्वीरें देख उसके चेहरे पर बार- बार मुस्कान फैल जाती।वह खोई हुई थी...हाथ में मोबाईल ...स्क्रीन पर उभरती किलकारियों की अनुगूँज ..अमित ने देखा ....एक शुकून भरी लम्बी साँस ले उसने सौम्या के सिर पर हाथ रख पूछा....क्या देख रही हो?..बहुत दिनों बाद सौम्या के चेहरे पर पहले वाली मुस्कान लौटी...बेबी केयर टिप्स।....सौम्या चहकते हुए बता रही थी।राजीव चौक स्टेशन आने की उदघोषणा सुन सौम्या का हाथ थाम अमित ने उठने का आग्रह कर कहा चलो स्टेशन आ गया।
                सौम्या खड़ी हो गयी ...फोन अभी भी हाथ में था....पीछे मुड़ कर देखा।सबकी गर्दन मोबाईल में झूंकी हुई थी।मुस्कुराते हुए अमित को देखा और बाहर निकल आई।

सोनी पाण्डेय

चलो ,स्टेशन आ गया

                                                         चलो स्टेशन आ गया




सुनो ssन!.....
हूंsss सोने दो...
मत सुनो,कुम्भकर्ण के वशंज...कहते ,पैर पटकते सौम्या उठकर बाल्कनी में आकर रेलिंग  के सहारे खड़ी हो स्माइली के आकर के चाँद को देख मुस्कुरा उठी। ....आँखों के कोर नमी सहेजे चाँद को निहारते रहे और वह यादों की बस्ती में खोने लगी।....पिता माँ के उभरे पेट पर कान लगाए अजन्मे बच्चे को पुचकार रहे थे। वह भी उनकी नकल करती माँ के पेट पर चुम्बन दे बड़े प्यार से कहती..मेरा छोटा सा भाई कब आएगा पापा? पिता उसे गोद में उठा घूमाते और कहते जल्दी ही माँ अस्पताल से लेकर आएगी।
स्नेह की रसभरी डोर जिसे सौम्या बार -बार थामने की कोशिश करती ...अतित के पन्ने टटोलती ,उतनी ही बेचैनी बढ़ती जाती।पेट में शिशु करवटें बदलने लगा था....वह चाहती अमित को बताए कि उनका बच्चा अब महसूस कर सकता है उनका स्पर्श।वह चाहती कि पति पेट में चलते हुए बच्चे से बतियाए ...पर sss अफसोस कि उसे अपनी भागती दुनिया से इतर सब कुछ बस निबटाउ काम लगता।अॉफिस से लौट लैपटाप ले बैठ जाता....टोकने पर अॉफिस का जरुरी काम कह नाराजगी जताता।वहाँ से निबट मोबाईल ले बैठ जाता ...सौम्या के नाराज होने पर छत पर चला जाता।ये एक लाईलाज बीमारी बनती  जा रहा थी।सोते ,बैठते ,खाते यहाँ तक कि बाथरुम में भी मोबाईल साथ रहता। सौम्या की उब बढ़ती जा रही थी....।स्कूल से लौट वह अकेली अपनी दुनिया में इस कदर उबन महसूसने लगी थी की घर में दम घूटने लगा ।भाग कर कभी पार्क में जाकर बैठती...कभी बाल्कनी तो कभी छत पर जाकर घण्टों सामने पार्क में खेलते बच्चों को निहारती।एक शूकुन भरी मुस्कान चेहरे पर फैल जाती और पेट पर हाथ रख वह घण्टों मन की सुकोमल बातें अजन्में बच्चे से करती छत पर टहलती रहती।एक दिन पड़ोसी सान्याल ने अमित से कहा भी....यार अमित!..भाभीजी की तबियत तो ठीक है न?
क्यों ,क्या हुआ उसे ?भली चंगी तो है।...उल्टे उसने ही सौ सवाल दाग दिए।
बुरा न मानना...लेकिन उनकी मानसिक हालत ठीक नहीं लगती,...मानषी कह रही थी की अकेले घण्टों छत पर बड़बडाती रहतीं हैं।टेक केयर यार!...किसी अच्छे .....
अभी उसकी बात पूरी भी नहीं हुई थी की अमित दनदनाता हुआ लिफ्ट की ओर भागा।दरवाजे पर लगातार दस्तक सुन सौम्या ने हड़बडा कर दरवाजा खोला...अमित का चेहरा गुस्से से लाल देख सहम गयी।
क्या हुआ,किसी से लड़ाई हो गयी?....वह डरी थी ... अमित अपना बैग सोफे पर पटक उबल पड़ा...बिल्ड़िंग वाले तुम्हें पागल कहने लगें हैं...समझी sssss
सुबह -सुबह सान्याल ने मूड खराब कर दिया..
सौम्या आवाक उसका मुँह ताकती रही। हुवा क्या?धीरे से पूछा।वह सीधे उसके मुँह के पास आकर खड़ा हो गया...अच्छा ये बताओ ,अकेले में छत पर क्या बड़बड़ाती होsss
उसकी आवाज बहुत ऊँची थी....इतनी की मन की सुकोमल परतें चटक जाऐं।वह रोते हुए बस इतना ही पेट पर हाथ रख कह सकी....बेबी सेss...और फूट -फूट कर रोने लगी। अमित अब भी चिल्ला रहा था...बेवकूफ ....अपनी ये सेण्टी हरकतें घर में किया करो।सोसाइटी में मेरी बैण्ड मत बजवाओ...प्लीज ।वह हाथ जोड़ कर गिड़गिड़ा रहा था।आगे वह कुछ और कहता कि तभी मोबाईल बज उठा....सॉरी सर ...बस ssबस पहुँच रहा हूँ,...फोन पर कहते वह बैग उठा कर फूर्ती से बाहर निकल गया। 



                    घण्टो रोने के बाद सौम्या संयत हुई....सिर भारी हो गया था । मन घबड़ा रहा था ...वह किसी से कुछ कहना चाहती थी।दरवाजा खोल बाहर निकली...सामने की पड़ोसन अपना कुत्ता ले टहलाने ले जा रही थीं...हाय सौम्या! कहती मुस्कुराकर निकल गयीं।अगल बगल के फ्लैट से बच्चों के रोने की आवाज आ रही थी....माँ -बाप नौकरी पर निकल चुके थे ,आया टी.बी .चला कर बैठी अपने में मगन..उसकी घबराहट बढने लगी...दरवाजा लॉक कर लिफ्ट की ओर तेज कदमों से बढ़ गयी.....लिफ्ट की दीवार से सिर टिका आँख मूंद लिया....और जैसे तेज बवंडर उठा हो....लोग बेतहाशा भाग रहे थे....सरपट,....वह कुछ चेहरे पहचानती थी...पकड़ना चाहा और हाथ फिसल जा रहा था।अचानक एक झटके से लिफ्ट रुकी..सिक्योरिटी गॉड ने आवाज दी...मैड़म!
वह जेसे नींद से जागी हो,...जागी। बाहर निकल वह पार्क में एक पेड़ की छाया में आ बैठी। सामने कुछ घरों की आया बच्चों को झूला झूला रही थीं...कुछ गेंद खेल रहे थे।वह खेलते बच्चों को मुग्ध देख रही थी ....अचानक एक बच्चा गिर गया....घुटना छिल गया .बच्चा मम्माssss मम्मा कह रोए जा रहा था...उसकी आँखें भर आईं...आया ने उठा कर चुप करा वापस खेलने भेज दूसरी से बतियाने लगी।
               जाड़े की गुनगुनी धूप में खिले रंग -बिरंगे फूलों पर मंडराती तितलियों को देख सौम्या मन्द मुस्कान सहेजती कभी बच्चों को देखती ,कभी तितलियों को...चारों तरफ रंग और हरितिमा के बीच बच्चों की मोहक मासूम हँसी का कलरव ।वह जैसे परियों के देश में जा पहुँची...एक नन्हा फरिश्ता उसकी अंगुली थाम कर चल पड़ा हो फूलों की वादियों में.
सौम्याssss...अरे यार! तुम यहाँ बैठी हो और मैं पूरी बिल्ड़िंग में पागलों की तरह खोजता फिर रहा हूँ।अमित नाराज हो रहा था...उसकी आवाज में चिन्ता साफ झलक रही थी।तुम इतनी जल्दी लौट आए? 
हाँ,..मैंने आज अपनी बेगम के लिए छुट्टी ले ली है।हाथ पकड़ कर उठाते हुए...चलो जल्दी रेडी हो जाओ ...पिक्चर चलते हैं। जेब से टिकट निकाल कर दिखाते हुए।वह मुस्कुराकर उठ गयी। सौम्या का मन नहीं था पर अमित के अनुनय पर बेमन से तैयार हो चल पड़ी ।जानती थी आज अमित उसे लेकर परेशान है इस लिए ये सब कर अपनी गिल्टी दूर करना चाहता है।दोनों दिल्ली की भागती सड़कों से गुजरते मैट्रो स्टेशन पहुँचे। कार पार्किंग में लगा टिकट ले मैट्रो की प्रतीक्षा करने लगे...आज अमित गलती से भी मोबाईल हाथ में नहीं ले रहा था।सौम्या को देख कर खुशी हुई कि शायद अमित कुछ कुछ प्राब्लम समझ रहा है।सामने सर्रssss की आवाज के साथ मैट्रो रुकी ...एक जत्था निकला ,एक दाखिल हुआ। अन्दर भीड़ थी....एक लड़की सौम्या के उभरे पेट को देख कर अपनी सीट छोड़ उसे हाथ पकड़ बिठा दिया। सौम्या ने चारों तरफ नज़र दौड़ाई...लड़के, लड़कियाँ ,बूढ़े ,जवान से लेकर हाथों में गट्ठर लिए फेरी खोमचे वाले तक हाथ में मोबाईल लिए व्यस्त थे।उसे घुटन होने लगी...उसने अमित की तरफ देखा...बहुत देर से धैर्य रखे अमित भी हाथ में मोबाईल लिए टिपटाप करने में व्यस्त था।उसके चेहरे पर तरह तरह के भाव आ जा रहे थे..उसने नज़रें फेर ली ।बगल में बैठी लड़की गूगल पर ब्यूटी टिप्स सर्च कर रही थी।दूसरी शायद अपने प्रेमी से चैटिंग कर रही थी..रह-  रह कर चेहरे पर लाली फैल जा रही थी। सौम्या चारों तरफ बार -बार देखती और समझने की कोशिश करती ...जब सारी कोशिशें बेकार हो गयीं ,अचानक उसने अपना हाथ पर्स में डाल अपना फोन निकाल नेट आन कर गूगल पर टाईप किया....बेबी केयर टिप्स...एक एक कर ढ़ेर सारे  बुक ,विडियो के लिंक उभरने लगे।उसकी आँखें चमक उठीं...एक -एक को खोल देखने लगी।प्यारे -प्यारे बच्चों की मनभावन तस्वीरें देख उसके चेहरे पर बार- बार मुस्कान फैल जाती।वह खोई हुई थी...हाथ में मोबाईल ...स्क्रीन पर उभरती किलकारियों की अनुगूँज ..अमित ने देखा ....एक शुकून भरी लम्बी साँस ले उसने सौम्या के सिर पर हाथ रख पूछा....क्या देख रही हो?..बहुत दिनों बाद सौम्या के चेहरे पर पहले वाली मुस्कान लौटी...बेबी केयर टिप्स।....सौम्या चहकते हुए बता रही थी।राजीव चौक स्टेशन आने की उदघोषणा सुन सौम्या का हाथ थाम अमित ने उठने का आग्रह कर कहा चलो स्टेशन आ गया।
                सौम्या खड़ी हो गयी ...फोन अभी भी हाथ में था....पीछे मुड़ कर देखा।सबकी गर्दन मोबाईल में झूंकी हुई थी।मुस्कुराते हुए अमित को देखा और बाहर निकल आई।

सोनी पाण्डेय