गुरुवार, 4 मई 2017

नीतिश मिश्र की कविताऐं

नीतिश को पहले भी गाथांतर पर आप पढ़ चुके हैं। पेशे से पत्रकार नीतिश की कविताओं की भाव भूमि में प्रेम तत्व की प्रधानता होते हुए भी समसामिक घटनों की भी गहन पड़ताल है। युवा मन की छटपटाहट ....घूटन....संत्रास की अनुभूतियाँ सहेजे कवि की कविताओं की जमीन बेहद उर्वर है।



नमक पर प्रेमपत्र लिखता हूँ

मैं कागजों पर नहीं 
नमक पर प्रेमपत्र लिखता हूँ 
जिससे प्रेमपत्र का स्वाद 
सदियों तक सुरक्षित रहे 
हाँ 
मैं अब तुम्हे नमक के टुकड़ों पर प्रेमपत्र लिखता हूँ
ताकि मेरा प्रेमपत्र
समुद्र भी पढ़ सके
अनाज भी
इंसान भी
और बर्तन भी आग भी।।

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प्रश्न दीवारों में जीवित हैं .

सारे प्रश्न 
अभी भी दीवारों में 
जीवित हैं ......
रात भर मैं 
अपनी आत्मा से प्रश्नो की केंचुल उतारकर 
दीवारों पर सजाता रहता हूँ
मेरी दीवारें
मेरी आत्मकथा हैं
मैं दिन भर धरती पर 
उत्तर की खोज में साईकिल से भटकता रहता हूँ ...... 
इस क्रम में आँखों में कई बार इतिहास  चुभता हैं 
तो कई बार जख़्म  आईने में दिखाई देने लगते हैं ... 
सारी रात 
मैं अपने आत्मा के खाते में 
भागी हुई लड़कियों का रिपोर्ट दर्ज करता हूँ 
सारी रात टूटे हुए खिलौनों में एक रंग भरता रहता हूँ 
इसी बीच पता चलता हैं 
एक सांप मर गया 
जिसने पिछले साल रामअवतार  को मुक्ति का मार्ग दिखाया 
मैं सांप की मरी हुई आँखों में अपनी तस्वीर देखता हूँ 
और सोचता  मैं  इसकी आँखों से कैसे बच जाता था 
गेहुंअन सांप असंख्य बार मेरे कमरे में आता था 
और घंटो मेरी तरह गंभीर होकर 
मेरे प्रश्नों को पढता था 
फिर कुछ देर तक हँसता था 
मैं रात भर सांप के देह को देखता रहा 
और वह रात भर मुझे देखता रहा 

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एक बार गहरी नींद सोना चाहता हूँ

मैं युद्ध पर जाने से पहले 

एक बार गहरी नींद सोना चाहता हूँ 

और नांव के एकांत को 

अपने भीतर भरना चाहता हूँ 

मैं युद्ध पर जाने से पहले एक बार 

अपने घर की नीव में उतरना चाहता हूँ 

और वहां माँ की रखी हुई आस्था को 

एक नया अर्थ देना चाहता हूँ

मैं युद्ध पर जाने से पहले 

नींद में एक प्रेमपत्र लिखना चाहता हूँ 

मैं एक बार गंगा की रेत से मिलना चाहता हूँ .... 

मैं युद्ध पर जाने से पहले एक बार 

पीपल की पत्तियो पर जमी स्मृतियों को 

अपने भीतर भरना चाहता हूँ 

दीवारों पर निर्मित इतिहास को भाषा से रंगना चाहता हूँ 

मुझे मालूम हैं अगर 

मैं युद्ध से वापस नहीं लौटा 

तो कोई नहीं पूछेगा 

मेरे टूटे हुए खिलौनों का क्या अर्थ हैं 

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मेरा प्रेमपत्र लेकर कबूतर उड़ रहा हैं

मैं तुमको ऐसा प्रेमपत्र लिखना चाहता हूँ
जिसे कबूतर लेकर सरहदों के पार   उड़ सके
आसमान उसमे कुछ रंग भर सके
देवता प्रेमपत्र का वाचन कर सके
गरूण देखे तो कुछ देर तक बंद कर दे
अपनी उड़ान .....
इंद्र देखे तो उसे  भोग से घृणा हो जाए
वृहस्पति देखे तो टूट जाए उसका  अंहकार
मेनका देखे तो प्रायश्चित करने लगे......
गणेश देखे तो
मनुष्य होने के लिए
प्रार्थना में डूब जाए .....
मैं तुमको धरती से ऐसा प्रेमपत्र लिखना  चाहता हूँ
जिसे ऋषियों को यह कहना पड़े की
मुक्ति से ज्यादा कहीं पवित्र प्रेमपत्र लिखना हैं
सुनो ब्रह्मा !
मैं प्रेमपत्र में अपना प्यार भी लिखूंगा
अपनी गरीबी भी लिखूंगा
अपने खेत की हरियाली  भी लिखूंगा
अगर कुछ नहीं लिखूंगा तो केवल धर्म
जब मेरा प्रेमपत्र लक्ष्य तक पहुंचेगा
तब समझ लेना धरती पर मनुष्य हारता नहीं हैं
लेकिन मैं जानता  हूँ
तुममे से हर कोई
रोकेगा कबूतर को  ......
जब कबूतर प्रेमपत्र देकर वापस लौट रहा होगा
तब तुम लोग उसकी हत्या की नीति बना रहे होंगे
जिससे यह कबूतर दुबारा धरती से कोई अन्य प्रेमपत्र लेकर उड़ न सके
लेकिन मैंने सभी कबूतरों को दे दिया हूँ
अपना एक एक प्रेमपत्र ......
क्या ऐसे में तुम लोग आसमान में सारे कबूतरों को मार दोगे ?
बोलो देवताओं। ...

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इस सदी का प्रेमपत्र लिखना ही धर्म है

केवल मैं ही तुम्हें प्रेमपत्र नहीं लिखता हूं
मेरे प्रेमपत्र में मेरा शहर भी शामिल होता है
मेरे शहर की हवा भी उपस्थित रहती है
मेरे कमरे का अंधेरा भी प्रेमपत्र में शामिल हो जाता है
मैं जब खुश होता हूं या जब दुखी रहता हूूं
या जब  सुख- दुख कुछ भी नहीं होता है तब भी
मैं प्रेमपत्र लिखता हूं
शायद! इस सदी का प्रेमपत्र लिखना ही धर्म हो
धरती का सबसे बड़ा अविष्कार प्रेमपत्र लिखना ही रहा हो
जिसने भी प्रेमपत्र लिखने की कला का इजाद किया होगा
वह धरती का सबसे सभ्य मनुष्य रहा होगा
आज भी मैं उस आदमी के बारे में कल्पना करता रहता हूं
और उस लड़की के बारे में सोचता हूं
जिसके खाते में दर्ज हुई होगी सबसे पहले प्रेमपत्र के प्राप्त होने की खुशी
मैं जब भी तुम्हे प्रेमपत्र लिखकर खाली होता हूं
तब मैं दूसरे प्रेमपत्र के बारे में सोचने लगता हूं
मेरे लिए प्रेमपत्र बिल्कुल पानी की तरह है
प्रेमपत्र हर समाज का मनुष्य लिखता आया है
ऋषियों से लेकर आदिवासियों ने भी लिखा है
धरती पर रंग तभी तक बचे रहे
जब - तक हम प्रेमपत्र लिखते रहे
अगर हमे गंगा को या हिमालय को
जंगह को या अंधेरे को
आकाश को या धरती को बचाना है तो
हमे प्रेमपत्र लिखना ही होगा।।

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मैं कविता नहीं लिखना चाहता

अब मैं कविता नहीं लिखना चाहता 
या कविता लिखने की मुझमे योग्यता नहीं है 
अब मैं केवल और केवल 
प्रेमपत्र लिखना चाहता हूँ 
प्रेमपत्र सिर्फ मैं उस लड़की को नहीं लिखना चाहता हूँ 
जो मुझसे प्रेम करने की साहस रखती थी
बल्कि उस लड़की को भी लिखना चाहता हूँ
जिससे मैं प्रेम करने का साहस रखता था
बल्कि उस लड़की को भी लिखना चाहता हूँ
जो शहर में नदी से भी अधिक खूबसूरत थी
लेकिन मैं उससे प्रेम नहीं कर पाया
मैं उस कपास के पौधे को भी प्रेमपत्र लिखना चाहता हूँ
जिसके धागे का वह वस्त्र पहनती थी
मैं उस घर को भी प्रेमपत्र लिखना चाहता हूँ
जिसमे वह रहा करती थी
मैं उस देवता को भी प्रेमपत्र लिखना चाहता हूँ
जिससे वह मेरे लिए सिर्फ मेरे लिए प्रार्थना करती थी
मैं उस विश्वविद्यालय को भी प्रेमपत्र लिखना चाहता हूँ
जहाँ वह पढ़कर सभ्य होना सिख रही थी
मैं उस बिस्तर को भी प्रेमपत्र लिखना चाहता हूँ
जहाँ से वह पूरी रात सिर्फ मेरे बारे में सोचती थी
मैं उस गांव को प्रेमपत्र लिखना चाहता हूँ
जहाँ से वह चलकर सिर्फ मेरे लिए खाली हाथ आई थी
मैं उसके विषय को प्रेमपत्र लिखना चाहता हूँ
जो उसे इतना अवकाश देता था की वह मेरे बारे में सोच सके
अब मैं कविता नहीं लिखना चाहता हूँ
अब मैं केवल और केवल प्रेमपत्र लिखना चाहता हूँ।
मैं केवल सुबह ही नहीं बल्कि भोर में जब आसमान में तारे सो चुके होते है उस वक्त भी उसे प्रेमपत्र लिखना चाहता हूँ
मैं केवल बसंत में ही नहीं बल्कि खड़ी दुपहरी में रेत के बीच भी प्रेमपत्र लिखना  चाहता हूँ।

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जूते की शिकायत

बारिश से पूरा शहर खुश था 
सबसे अधिक शहर के नाले खुश थे 
साल में कुछ ही दिन तो होते है 
जब नालों की प्यास बुझती है
प्यास बुझने के बाद
नाले शहर के विवेक को बचाने में जूट जाते है
अगर नाले शहर में न हो
तब शहर का विवेक मर जाता है
कभी कभी बहुत जरूरी होता है नालों का होना
बारिश में जहाँ पूरा शहर खुश था
वही चूल्हें उदास थे
चूल्हें खो चुके थे अपना चेहरा
अपना धर्म ......
टूटे हुए चूल्हें बगावत की मुद्रा में
आसमान से नजरें मिला रहे थे
बारिश में पेड़ भींगकर एक नई भाषा को जन्म दे रहे थे
वहीँ इस बारिश में
शहर के तमाम जूते
बादल से शिकायत कर रहे थे
जबकि जूतों ने कभी अन्य मौसम के खिलाफ
कभी शिकायत नहीं किए
लेकिन सदी में पहली
बार जूतों ने शिकायत दर्ज कराई है
जूते मोची की भी शिकायत कर रहे थे
मोची को जूता बनाने से पहले हमारे बारे में कुछ सोचना चाहिए था
बारिश में सबसे अधिक नुकसान जूता को ही उठाना पड़ता है।।

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दिल्ली केवल भाषा है

दिल्ली एक आईना है 
जहाँ हर कोई अपना चेहरा देखना चाहता है 
दिल्ली एक किताब है 
जहाँ पूरा हिंदुस्तान अपना अध्याय खोज रहा है 
दिल्ली एक जूते के समान है 
जिसे हर पाँव पहनना चाहता है 
दिल्ली एक बेल्ट है 
जिसे सभी लोग कमर में कसना चाहते है 
दिल्ली एक पर्स है 
जो किस्मत बदलने का हूनर सिखाती है 
लेकिन मेरे लिए दिल्ली केवल भाषा है .....

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सड़क सब कुछ जानती है

तुम कहाँ हो
तुम कैसी हो
मुझे नहीं मालूम 
कई बार जानना चाहा
पर परिंदों की तरह शाम को अजान होने से पहले
खाली मुंह वापस लौट आता
लेकिन तुम्हारे बारे में मुझसे अधिक
सड़के जानती है
हर सड़क को मालूम है
तुम्हारा वजन कितना है
हर सड़क को मालूम है
तुम्हारे पाँव में जूते किस नंबर के आते है
शहर की सभी सड़के जानती है
तुम कब बालों में दो चोंटी करती थी
तुम कब डरती थी
तुम कब खुश होती थी
तुम कबसे साड़ी पहनना शुरू कर दी
शहर की सभी सड़के जानती है
तुम आखिरी बार मुझसे मिलकर कहाँ गई
लेकिन आज तक यह सड़के तुम्हारे बारे में किसी को कुछ भी नहीं बताई
मैंने सड़को से हजार बार तुम्हारे बारे में पूछा होगा
पर हर बार सड़के मौन होकर मेरी तरफ देंखती है और मुस्कुरा देती है।
तुम खुद को लाख नास्तिक कहो लेकिन
सड़के बताती है
तुम आस्तिक थी।।

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मैं रेल की तरह सभ्य होना चाहता हूँ

मैं रेल की तरह सभ्य होकर 

तुमसे प्यार करना चाहता हूँ 

मैं रेल की तरह तुम्हारे शहर में सिटी बजाते हुए 

धुंआ  उड़ाते हुए आना चाहता हूँ 

सोचो !

अगर मैं रेल की तरह तुम्हे सभ्य होकर प्यार करूँ तो 

सारा आसमान कुछ देर के लिए तुम्हारे छत पर उतर सकता हैं 

और तुम पूरी रात चाँद में दबी  हुई हरी घास बिनते  रहना 

मैं जानता  हूँ 

अगर ! 

तुम्हारे शहर में 

मैं आत्मा या भाषा बनकर आऊंगा तो कभी भी मार दिया  जाऊंगा 

अगर मैं तुम्हारे शहर में सड़क बनकर आऊंगा 

तो लोग मेरे प्यार का मजाक उड़ाएंगे 

अगर पतंग बनकर आऊंगा तो हवा में ही दफ़न हो जाऊंगा 

जब भी रेल की तरह आऊंगा तो तुम आसमान की तरह मुझसे मिलोगी और कुछ देर के बाद 

हम रोशनी में तब्दील जाएंगे 

मैं अब रेल की तरह  सभ्य होना चाहता हूँ 

तुम केवल आसमान की तरह फैलना  सीख  जाओं ॥ 

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मेरी खबर में

आज एक बच्चे की गेंद गायब हो गई
एक क्षण के लिए मुझे लगा की धरती गायब हो गई 
आज उसी बच्चे के पांव से जूता गायब हो गया 
मुझे लगा की मेरे दोनों पांव गायब हो गए
आज एक बच्चे का चेहरा गायब हो गया
मुझे लगा की अब शहर की नैतिकता मर चुकी है
आज एक बच्चे का बस्ता गायब हो गया
मुझे लगा की आज किसी ने मेरा दिल चुरा लिया
आज एक बच्चे का खिलौना गायब हो गया
मुझे लगा की मेरा विस्थापन हो गया।
आज मैं खबर लिख रहा था बचपन की
शहर में इसी बीच कोई मेरा प्रेमपत्र चुरा रहा था।।

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सिग्रेट की डीबिया

सिग्रेट की डीबिया पर 
शाम को तुम्हारा नाम लिखा था 
रात को धुएं के साथ 
तुम्हारा नाम 
आसमान में अपना वजूद खोज रहा था 
अँधेरे में 
सिग्रेट की डीबिया पर 
रात भर तुम्हारा स्केच बनाता रहा 
सुबह जब नींद खुली 
तब सभी ख्वाब राख हो चुके थे 
और तुम्हारा स्केच भी गायब हो चूका था
ठीक वैसे ही जैसे तुम बिना बताएं
नदी के रास्ते चली गई थी।

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सबसे अच्छी प्रार्थना सुअर के पास

समय के दुष्चर्क में दिल्ली हो या उज्जैन
सुबह- शाम होती रहती है प्रार्थनाएं
कभी यह प्रार्थनाएं संविधान की हत्या के लिए कभी
नजीर, कबीर/ मोहित- मोहन जैसे लोगोंं को मारने के लिए
सभ्यता की पहली सीढ़ी से लेकर आखिरी सीढ़ी तक आदमी
बिस्तर से लेकर संसद तक करता रहता प्रार्थनाएं
आदमी की सुबह से लेकर रात तक की प्रार्थनाओं में सिर्फ सुविधा के मंत्र की आवाज आती है
यहां तक कि दुनिया का सबसे बड़ा उस्ताद अस्पताल में भी सुविधा के मौत को ही मांगता है
लेकिन दुनिया की परिधि में सबसे अच्छा प्रार्थना कोई करता है
तो वह है सुअर!!
सुअर अपनी प्रार्थना में जगल में भी पानी मांगता है और पानी में भी जंगल
सुअर अपनी प्रार्थना में कभी अपने हाथ को साफ करने की सुविधा नहीं मांगती है
इसलिए गौर से देखे तो धरती पर सबसे खूबसूरत अगर कोई है तो वह है सुअर
सुअर दिल्ली से लेकर दौलताबाद तक एक आवाज में बात करती है
जबकि आदमी दिल्ली से लेकर बनारस के बीच अपनी आवाज और शक्ल भी बदल लेता है
सुअर कभी किसी देवालय में नहीं
सुअर तुमकों देखकर प्रार्थनांए करती है ।।



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