सुरेन्द्र रघुवंशी की कविताओं की भावभूमि का विस्तार मनुष्यता की पूरी धरती नापता है।यहाँ औरत भी है,प्रकृति भी और अन्नदाता के साथ -साथ जीवन संघर्ष भी।
आज गाथांतर वरिष्ठ कवि का स्वागत करता है तथा साथ ही कवि की कविताऐं अपने पाठकों के सम्मुख करते हुए यह उम्मीद करता है कि कविताओं के संसार से गुजरते हुए वह कुछ न कुछ जीने की ललक जरुर पाएगा इस जलते हुए समय में।
।। याद करो ।।
खण्डहर होते उन निर्जन किलों को बार-बार देखो
जिनके कँगूरों पर सूखी घास सरसरा रही है
इनमें वे किले भी शामिल करो
जो कभी राज दरबार हुआ करते थे
और अब वे सरकारी दफ़्तर या संग्रहालय हैं
इतिहास के कानों में दर्ज़ घोड़ों की टापों को सुनो
टप टप टप तब तबअब अब कब कब????
राजाज्ञाओं के पालन में घुड़सवार सैनिकों के चाबुकों की फट-फट फटकार सुनो
जो गरीब किसान मज़दूरों की चमड़ी उधेड़ने से उपजती थीं
उन स्त्रियों का करुण क्रंदन सुनो
जिनको पैरों में जूती की तरह पहना गया
ज़मीन और पैरों के बीच जिन्हें घिसा जाता रहा
जिनकी आवाज़ का गला घोंटा गया
और वे डरती हुईं
इशारों में जीने लायक संकेतों में बतियाती रहीं
राज दरबारों के क्रूरतम और जनविरोधी
आदेशों की वास्तविक पड़ताल करो
समय की अदालत में बुलाओ उन दीवारों को
गवाही के लिए जिन्होंने देखा है सच
और जिनका पुनरदृश्यांकन ज़रूरी है
वर्तमान व्यवस्था को सबक के लिए।
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।। सावधान ।।
मन के मैदान में
क्रूरता के गड्ढे खोदने वालों से सवधान
ह्रदय के खुले समतल में
विभाजन की दीवारें बनाने वालों से सावधान
सवधान कपट के घोड़ों की टापों से
संवेदनाओं की फसलें कुचलने वालों से
लौटा दो अवसरवादी सियासत के नुमाइंदों को
अविलम्ब अपने दरवाजों से
वे आपके दरवाजे की शोभा नहीं
बल्कि विषधर हैं जिनको दूध पिलाने से
उनका विष ही बढ़ेगा
और कहने की जरूरत नहीं
कि विष घातक है जीवन के लिए
नीले आसमान को चिड़ियों के लिए
अविलम्ब ख़ाली करो गिद्धों !
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।। बागड़ चर गई फसल हमारी ।।
अच्छी खासी लहलहाती फसल थी खेत में
आवारा ,असामाजिक सांड़ों से उसकी रक्षा हेतु
नुकीले काँटों के अधिकारों से लैस बागड़ को
खेत के चारों ओर तैनात कर दिया गया।
हवा में हिचकोले खाती जा रही हरी कच्च
जवान फसल के सौन्दर्य को देखकर
काँटों से भरी बागड़ के मुंह में पानी आ गया
बागड़ के शरीर में जगह- जगह उग आये दाँत
बागड़ अपनी तैनाती का उद्देश्य भूल
बलात कोमल फसल पर टूट पड़ी
यह आश्चर्यजनक किन्तु सत्य घटना थी
कि दिनदहाड़े और सरेआम बागड़ फसल को चर रही थी
बागड़ ने इसका कारण अपनी भूख बताया
उसने निरन्तर फसल चरने को
अपने हक़ की तरह दर्शाते हुए
इस पर जन स्वीकृति की मुहर चाही
जो थोड़े से प्रयास से मिल भी गई
बागड़ ने कुरेदने पर यह भी बताया
कि वह खुद भोपाल और दिल्ली की
बड़ी बागड़ों द्वारा चरी जाकर ही
इस खेत की निगरानी का अधिकार पा सकी है
कि हमें भी ऊपर देना पड़ता है
तब जाकर यहां बैठे हैं साहब
कितने ही खेत चिल्ला रहे हैं
"बागड़ हमारी फसल खा गई साहब ! "
वे फसलभक्षी बागड़ों से ही बागड़ों की शिकायत कर रहे हैं।
जिसे कोई नहीं सुन रहा है
अमानवीय और बहरे हो गए अंधड़ में
कौन किसकी सुनता है?
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।। जागरण ।।
नींदों को समन्दरों में डुबोकर
रहना है रातभर सफ़र में
काली रातों और बिगड़ैल दिनों के खिलाफ़
न्याय के सूरज को लाने के लिए
विश्राम को तिलांजलि देते हुए
वर्जित है ऊँघना समय की इस ऊँची चट्टान पर
अमानवीय खाइयों को पाटकर
विश्वास के पुल की बहाली के लिए
क्रियाशील रहना होगा आँखों से खुमारी उतारकर
नींदों के सपनों से निकल
दैत्य अब प्रत्यक्ष सामने आकर हमलावर हो गए है
अपनी संचित ऊर्जा को एकत्र कर
इनकी नाभि में शर संधान करके
इनके विश्व विजयी होने के दम्भ को चूर करते हुए
अमृत कुंड सोखकर इन्हें धराशाही करने का
माक़ूल वक़्त है ये
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।। बुद्धा सिंह की तलाश ।।
रेल्वे की टिकिट खिड़की के पास चिपका है
बुद्धा सिंह की तलाश का पर्चा
नाम बुद्धा सिंह
उम्र सत्तर साल
हुलिया पर्चे में छपी फोटो मुताबिक
हाथ में बुद्धा सिंह गुदवाई द्वारा लिखा है
शरीर इकहरा
स्वभाव सीधा साधा
थाना केन्ट ,गुना
पता देने वाले को उचित इनाम दिया जायेगा।
नीचे लिखे मोबाइल नम्बर पर सूचना दें
आँखों में विश्वास और चेहरे पर मुस्कान लेकर
आखिर कहां चला गया बुद्धा सिंह
या भाग गया परिजनों से नाराज़ होकर
अथवा फसल बर्बादी और कर्ज़ के बोझ से दबकर
गले के गमछे से फंदा बना कर
किसी पेड़ की डाली से झूल तो नहीं गया बुद्धा सिंह
आशंकाओं के अंधड़ के बीच
आखिर शुकूनदायी है
बुद्धा सिंह की तलाश का यह पर्चा
जो समय की दीवार पर उम्मीदों की तरह चिपका है
कि आख़िर सत्तर साल के बूढ़े बुद्धा सिंह की ज़रूरत
परिजनों को ही सही पर किसी को है तो सही।
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।। माँ ।।
मनुष्यता की उर्वरा धरती पर
तुम करुणा और वात्सल्य के
दो पय पर्वत हो माँ !
पानी से भरे हुए बादलों को
पृथ्वी पर बरसाने के लिए
तुम उनमें ज़रूरी हो गए अनगिनित छिद्र हो
दुःख सुख और प्रेम में
सबसे पहले बरसने वाली
पृथ्वीनुमा गोल दो बोलती आँखें हो
संघर्षों के सूरज के झुलसाते ताप से
जीवन की धरा को बचाने वाली
सूरज और पृथ्वी के बीच तनी हुई
सफेद इच्छाओं वाली
काली सघन और मजबूत विस्तार में फैली हुई
अनन्त केश राशि हो तुम माँ !
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।।धरती-आकाश।।
जब गर्मी होती है असहनीय
धरती आकाश के भरोसे मौसम से हारती नहीं
उसके जेहन में बरसात का सुन्दर सपना होता है
काले बादलों के शरीर में हरियाली के बीज हैं
जिसे धरती अपनी कोख में धारण कर लेगी
धरती का गर्भाशय सृजन की सारी विधाओं का आधार है
धरती को देखते हुए आकाश
आश्वासन की मधुर मुस्कान बिखेरता है
और धरती आकाश से नजरें मिलाती हुई
अपनी उमस को अनदेखा करती है
हवाएं बदलाव के गीत गा रही हैं
और धरती की त्वचा पर घास के रोंगटे खड़े हो गए हैं
- सुरेन्द्र रघुवंशी
सुरेन्द्र रघुवंशी
जन्म- 2 अप्रैल सन 1972
गनिहारी , जिला अशोकनगर मध्यप्रदेश में
शिक्षा- हिंदी साहित्य , अंग्रेजी साहित्य और राजनीति विज्ञान में स्नातकोत्तर ।
आकाश वाणी और दूरदर्शन से काव्य पाठ
देश की प्रमुख समकालीन साहित्यिक पत्रिकाओं ' समकालीन जनमत' , ' कथाबिम्ब' , ' कथन' , 'अक्षरा' , 'वसुधा' , ' युद्धरत आम आदमी' , 'हंस' , 'गुडिया' , ' वागर्थ', ' साक्षात्कार' , ' अब' , 'कादम्बिनी' , ' दस्तावेज' , ' काव्यम' , ' प्रगतिशील आकल्प' ' सदानीरा' ' समावर्तन ' एवं वेब पत्रिकाओं ' वेबदुनिया' , ' कृत्या' सहित देश की तमाम प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में
कविताएँ , कहानी, आलोचना प्रकाशित ।
मध्य प्रदेश साहित्य अकादमी द्वारा ' जमीन जितना' काव्य संकलन प्रकाशित
दूसरा काव्य संकलन 'स्त्री में समुद्र'
तीसरा काव्य संकलन ' पिरामिड में हम ' ।
शिक्षक आन्दोलन से गहरा जुडाव
विभिन्न जन आन्दोलनों में सक्रिय भागीदारी
अपने नेतृत्व में मध्य प्रदेश में 11000/- सरकारी शिक्षकों की सर्वोच्च न्यायालय के माध्यम से नियुक्ति ।
मध्य प्रदेश शासन के स्कूल शिक्षा विभाग में शिक्षक के रूप में कार्यरत ।
विभिन्न सामाजिक और मानवीय सरोकारों के विषयों पर विभिन्न मंचों से व्याख्यान ।
कुछ कविताओं का अंग्रेजी और फिलीपीनी टेगालोग भाषा एवं मराठी , गुजराती एवं मलयालम आदि भारतीय भाषाओँ में अनुवाद ।
कविता कोष में कविताएँ शामिल ।
हिंदुस्तान टाइम्स डॉट कॉम और नवभारत क्रॉनिकल का संयुक्त बोल्ट अवार्ड ।
एयर इंडिया का रैंक अवार्ड ।
मानवाधिकार जन निगरानी समिति में रास्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य के रूप में कार्य ।
प्रांतीय अध्यक्ष मध्य प्रदेश राज्य शिक्षक उत्थान संघ
जनवादी लेखक संघ में प्रांतीय संयुक्त सचिव (म. प्र.)
एडमिन/ सम्पादक-
'सृजन पक्ष' -वाट्स एप दैनिक एवं फेसबुक साहित्यिक पत्रिका
'जनवादी लेखक संघ'- फेसबुक साहित्यिक पत्रिका
'जनपक्ष'- फेसबुक साहित्यिक ग्रुप 'नई किताब नई पत्रिका'- फेसबुक समूह
संपर्क -महात्मा बाड़े के पीछे , टीचर्स कॉलोनी अशोक नगर मध्य प्रदेश, 473331 ।
मोबाईल 09926625886
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