गुरुवार, 22 जून 2017

सुरेन्द्र रघुवंशी

   सुरेन्द्र रघुवंशी की कविताओं की भावभूमि का विस्तार मनुष्यता की पूरी धरती नापता है।यहाँ औरत भी है,प्रकृति भी और अन्नदाता के साथ -साथ जीवन संघर्ष भी।

आज गाथांतर वरिष्ठ कवि का स्वागत करता है तथा साथ ही कवि की कविताऐं अपने पाठकों के सम्मुख करते हुए यह उम्मीद करता है कि कविताओं के संसार से गुजरते हुए वह कुछ न कुछ जीने की ललक जरुर पाएगा इस जलते हुए समय में।

।।  याद करो  ।।

खण्डहर होते उन निर्जन किलों को बार-बार देखो
जिनके कँगूरों पर सूखी घास सरसरा रही है
इनमें वे किले भी शामिल करो
जो कभी राज दरबार  हुआ करते थे
और अब वे सरकारी दफ़्तर या संग्रहालय हैं

इतिहास के कानों में दर्ज़ घोड़ों की टापों को सुनो
टप टप टप तब तबअब अब कब कब????
राजाज्ञाओं के पालन में घुड़सवार सैनिकों के चाबुकों की फट-फट फटकार सुनो
जो गरीब किसान मज़दूरों की चमड़ी उधेड़ने से उपजती थीं

उन स्त्रियों का करुण क्रंदन सुनो
जिनको पैरों में जूती की तरह पहना गया
ज़मीन और पैरों के बीच जिन्हें घिसा जाता रहा
जिनकी आवाज़ का गला घोंटा गया
और वे डरती हुईं
इशारों में जीने लायक संकेतों में बतियाती रहीं

राज दरबारों के क्रूरतम और जनविरोधी
आदेशों की वास्तविक पड़ताल करो
समय की अदालत में बुलाओ उन दीवारों को
गवाही के लिए जिन्होंने  देखा है सच
और जिनका पुनरदृश्यांकन ज़रूरी है
वर्तमान व्यवस्था को सबक के लिए।

******

                  ।।   सावधान  ।।

मन के मैदान में
क्रूरता के गड्ढे खोदने वालों से सवधान
ह्रदय के खुले समतल  में
विभाजन की दीवारें बनाने वालों से सावधान
सवधान कपट के घोड़ों की टापों से
संवेदनाओं की फसलें कुचलने वालों से

लौटा दो अवसरवादी सियासत के नुमाइंदों को
अविलम्ब अपने दरवाजों से
वे आपके दरवाजे की शोभा नहीं
बल्कि विषधर हैं जिनको दूध पिलाने से
उनका विष ही बढ़ेगा
और कहने की जरूरत नहीं
कि विष घातक है जीवन के लिए

नीले आसमान को चिड़ियों के लिए
अविलम्ब ख़ाली करो गिद्धों !

******
             ।। बागड़ चर गई फसल हमारी ।।

अच्छी खासी लहलहाती फसल  थी खेत में
आवारा ,असामाजिक सांड़ों से उसकी रक्षा हेतु
नुकीले काँटों के अधिकारों से लैस बागड़ को
खेत के चारों ओर तैनात कर दिया गया।

हवा में हिचकोले खाती जा रही हरी कच्च
जवान फसल के सौन्दर्य को देखकर
काँटों से भरी बागड़ के मुंह में पानी आ गया
बागड़ के शरीर में जगह- जगह उग आये दाँत

बागड़ अपनी तैनाती का उद्देश्य भूल
बलात कोमल फसल पर टूट पड़ी
यह आश्चर्यजनक किन्तु सत्य घटना थी
कि दिनदहाड़े और सरेआम बागड़ फसल को चर रही थी

बागड़ ने इसका कारण अपनी भूख बताया
उसने निरन्तर फसल चरने को
अपने हक़ की तरह दर्शाते हुए
इस पर जन स्वीकृति की मुहर चाही
जो थोड़े से प्रयास से मिल भी गई

बागड़ ने कुरेदने पर यह भी बताया
कि वह खुद भोपाल और दिल्ली की
बड़ी बागड़ों द्वारा चरी जाकर ही
इस खेत की निगरानी का अधिकार पा सकी है
कि हमें भी ऊपर देना पड़ता है
तब जाकर  यहां बैठे हैं साहब

कितने ही खेत चिल्ला रहे हैं
"बागड़ हमारी फसल खा गई साहब ! "
वे फसलभक्षी बागड़ों से ही बागड़ों की शिकायत कर रहे हैं।
जिसे कोई नहीं सुन रहा है
अमानवीय और बहरे हो गए अंधड़ में
कौन किसकी सुनता है?

*****

                     ।। जागरण ।।

नींदों को समन्दरों में डुबोकर
रहना है रातभर सफ़र में
काली रातों और बिगड़ैल दिनों के खिलाफ़
न्याय के सूरज को लाने के लिए
विश्राम को तिलांजलि देते हुए
वर्जित है ऊँघना समय की इस ऊँची चट्टान पर

अमानवीय खाइयों को पाटकर
विश्वास के पुल की बहाली के लिए
क्रियाशील रहना होगा आँखों से खुमारी उतारकर

नींदों के सपनों से निकल
दैत्य अब प्रत्यक्ष सामने आकर हमलावर हो गए है
अपनी संचित ऊर्जा को एकत्र कर
इनकी नाभि में शर संधान करके
इनके विश्व विजयी होने के दम्भ को चूर करते हुए
अमृत कुंड सोखकर इन्हें धराशाही करने का
माक़ूल वक़्त है ये

   ****

।। बुद्धा सिंह की तलाश ।।

रेल्वे की टिकिट खिड़की के पास चिपका है
बुद्धा सिंह की तलाश का पर्चा

नाम बुद्धा सिंह
उम्र सत्तर साल
हुलिया पर्चे में छपी फोटो मुताबिक

हाथ में बुद्धा सिंह गुदवाई द्वारा लिखा है
शरीर इकहरा
स्वभाव सीधा साधा
थाना केन्ट ,गुना

पता देने वाले को उचित इनाम दिया जायेगा।
नीचे लिखे मोबाइल नम्बर पर सूचना दें

आँखों में विश्वास और चेहरे पर मुस्कान लेकर
आखिर कहां चला गया बुद्धा सिंह
या भाग गया परिजनों से नाराज़ होकर
अथवा फसल बर्बादी और कर्ज़ के बोझ से दबकर
गले के गमछे से फंदा बना कर
किसी पेड़ की डाली से झूल तो नहीं गया बुद्धा सिंह

आशंकाओं के अंधड़ के बीच
आखिर शुकूनदायी है
बुद्धा सिंह की तलाश का यह पर्चा
जो समय की दीवार पर उम्मीदों की तरह चिपका है
कि आख़िर सत्तर साल के बूढ़े  बुद्धा सिंह की ज़रूरत
परिजनों को ही सही पर किसी को है तो सही।

*****
     
         ।।  माँ  ।।

मनुष्यता की उर्वरा धरती पर
तुम करुणा और वात्सल्य के
दो पय पर्वत हो माँ !

पानी से भरे हुए बादलों को
पृथ्वी पर बरसाने के लिए
तुम उनमें ज़रूरी हो गए  अनगिनित छिद्र हो

दुःख सुख और प्रेम में
सबसे पहले बरसने वाली
पृथ्वीनुमा गोल दो बोलती आँखें हो

संघर्षों के सूरज के झुलसाते ताप से
जीवन की धरा को बचाने वाली
सूरज और पृथ्वी के बीच तनी हुई
सफेद इच्छाओं वाली
काली सघन और मजबूत  विस्तार में फैली हुई
अनन्त केश राशि हो तुम माँ !

****

                ।।धरती-आकाश।।

जब गर्मी होती है असहनीय
धरती आकाश के भरोसे मौसम से हारती नहीं
उसके जेहन में बरसात का सुन्दर सपना होता है

काले बादलों के शरीर में हरियाली के बीज हैं
जिसे धरती अपनी कोख में धारण कर लेगी
धरती का गर्भाशय सृजन की सारी विधाओं का आधार है

धरती को देखते हुए आकाश
आश्वासन की मधुर मुस्कान बिखेरता है
और धरती आकाश से नजरें मिलाती हुई
अपनी उमस को अनदेखा करती है

हवाएं बदलाव के गीत गा रही हैं
और धरती की त्वचा पर घास के रोंगटे खड़े हो गए हैं
                   - सुरेन्द्र रघुवंशी

सुरेन्द्र रघुवंशी

जन्म- 2 अप्रैल सन 1972
गनिहारी , जिला अशोकनगर मध्यप्रदेश में
शिक्षा- हिंदी साहित्य , अंग्रेजी साहित्य और राजनीति विज्ञान में स्नातकोत्तर ।
आकाश वाणी और दूरदर्शन से काव्य पाठ
देश की प्रमुख समकालीन साहित्यिक पत्रिकाओं ' समकालीन जनमत' , ' कथाबिम्ब' , ' कथन' , 'अक्षरा' , 'वसुधा' , ' युद्धरत आम आदमी' , 'हंस' , 'गुडिया' , ' वागर्थ', ' साक्षात्कार' , ' अब' , 'कादम्बिनी' , ' दस्तावेज' , ' काव्यम' , ' प्रगतिशील आकल्प' ' सदानीरा' ' समावर्तन ' एवं वेब पत्रिकाओं ' वेबदुनिया' , ' कृत्या' सहित देश की तमाम प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में
कविताएँ , कहानी, आलोचना प्रकाशित ।
मध्य प्रदेश साहित्य अकादमी द्वारा ' जमीन जितना' काव्य संकलन प्रकाशित
दूसरा काव्य संकलन 'स्त्री में समुद्र'
तीसरा काव्य संकलन ' पिरामिड में हम ' ।
शिक्षक आन्दोलन से गहरा जुडाव
विभिन्न जन आन्दोलनों में सक्रिय भागीदारी
अपने नेतृत्व में मध्य प्रदेश में 11000/- सरकारी शिक्षकों की सर्वोच्च न्यायालय के माध्यम से नियुक्ति ।
मध्य प्रदेश शासन के स्कूल शिक्षा विभाग में शिक्षक के रूप में कार्यरत ।
विभिन्न सामाजिक और मानवीय सरोकारों के विषयों पर विभिन्न मंचों से व्याख्यान ।
कुछ कविताओं का अंग्रेजी और फिलीपीनी टेगालोग भाषा एवं मराठी , गुजराती एवं मलयालम आदि भारतीय भाषाओँ में अनुवाद ।
कविता कोष में कविताएँ शामिल ।
हिंदुस्तान टाइम्स डॉट कॉम और नवभारत क्रॉनिकल का संयुक्त बोल्ट अवार्ड ।
एयर इंडिया का रैंक अवार्ड ।
मानवाधिकार जन निगरानी समिति में रास्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य के रूप में कार्य ।
प्रांतीय अध्यक्ष मध्य प्रदेश राज्य शिक्षक उत्थान संघ
जनवादी लेखक संघ में प्रांतीय संयुक्त सचिव (म. प्र.)
एडमिन/ सम्पादक-
'सृजन पक्ष' -वाट्स एप दैनिक एवं फेसबुक साहित्यिक पत्रिका
'जनवादी लेखक संघ'- फेसबुक साहित्यिक पत्रिका
'जनपक्ष'- फेसबुक साहित्यिक ग्रुप           'नई किताब नई पत्रिका'- फेसबुक समूह
संपर्क -महात्मा बाड़े के पीछे , टीचर्स कॉलोनी अशोक नगर मध्य प्रदेश, 473331 ।
मोबाईल 09926625886
email-surendraganihari@gmail.com
srijanpaksh@gmail.com

सुरेन्द्र रघुवंशी

   सुरेन्द्र रघुवंशी की कविताओं की भावभूमि का विस्तार मनुष्यता की पूरी धरती नापता है।यहाँ औरत भी है,प्रकृति भी और अन्नदाता के साथ -साथ जीवन संघर्ष भी।

आज गाथांतर वरिष्ठ कवि का स्वागत करता है तथा साथ ही कवि की कविताऐं अपने पाठकों के सम्मुख करते हुए यह उम्मीद करता है कि कविताओं के संसार से गुजरते हुए वह कुछ न कुछ जीने की ललक जरुर पाएगा इस जलते हुए समय में।

।।  याद करो  ।।

खण्डहर होते उन निर्जन किलों को बार-बार देखो
जिनके कँगूरों पर सूखी घास सरसरा रही है
इनमें वे किले भी शामिल करो
जो कभी राज दरबार  हुआ करते थे
और अब वे सरकारी दफ़्तर या संग्रहालय हैं

इतिहास के कानों में दर्ज़ घोड़ों की टापों को सुनो
टप टप टप तब तबअब अब कब कब????
राजाज्ञाओं के पालन में घुड़सवार सैनिकों के चाबुकों की फट-फट फटकार सुनो
जो गरीब किसान मज़दूरों की चमड़ी उधेड़ने से उपजती थीं

उन स्त्रियों का करुण क्रंदन सुनो
जिनको पैरों में जूती की तरह पहना गया
ज़मीन और पैरों के बीच जिन्हें घिसा जाता रहा
जिनकी आवाज़ का गला घोंटा गया
और वे डरती हुईं
इशारों में जीने लायक संकेतों में बतियाती रहीं

राज दरबारों के क्रूरतम और जनविरोधी
आदेशों की वास्तविक पड़ताल करो
समय की अदालत में बुलाओ उन दीवारों को
गवाही के लिए जिन्होंने  देखा है सच
और जिनका पुनरदृश्यांकन ज़रूरी है
वर्तमान व्यवस्था को सबक के लिए।

******

                  ।।   सावधान  ।।

मन के मैदान में
क्रूरता के गड्ढे खोदने वालों से सवधान
ह्रदय के खुले समतल  में
विभाजन की दीवारें बनाने वालों से सावधान
सवधान कपट के घोड़ों की टापों से
संवेदनाओं की फसलें कुचलने वालों से

लौटा दो अवसरवादी सियासत के नुमाइंदों को
अविलम्ब अपने दरवाजों से
वे आपके दरवाजे की शोभा नहीं
बल्कि विषधर हैं जिनको दूध पिलाने से
उनका विष ही बढ़ेगा
और कहने की जरूरत नहीं
कि विष घातक है जीवन के लिए

नीले आसमान को चिड़ियों के लिए
अविलम्ब ख़ाली करो गिद्धों !

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             ।। बागड़ चर गई फसल हमारी ।।

अच्छी खासी लहलहाती फसल  थी खेत में
आवारा ,असामाजिक सांड़ों से उसकी रक्षा हेतु
नुकीले काँटों के अधिकारों से लैस बागड़ को
खेत के चारों ओर तैनात कर दिया गया।

हवा में हिचकोले खाती जा रही हरी कच्च
जवान फसल के सौन्दर्य को देखकर
काँटों से भरी बागड़ के मुंह में पानी आ गया
बागड़ के शरीर में जगह- जगह उग आये दाँत

बागड़ अपनी तैनाती का उद्देश्य भूल
बलात कोमल फसल पर टूट पड़ी
यह आश्चर्यजनक किन्तु सत्य घटना थी
कि दिनदहाड़े और सरेआम बागड़ फसल को चर रही थी

बागड़ ने इसका कारण अपनी भूख बताया
उसने निरन्तर फसल चरने को
अपने हक़ की तरह दर्शाते हुए
इस पर जन स्वीकृति की मुहर चाही
जो थोड़े से प्रयास से मिल भी गई

बागड़ ने कुरेदने पर यह भी बताया
कि वह खुद भोपाल और दिल्ली की
बड़ी बागड़ों द्वारा चरी जाकर ही
इस खेत की निगरानी का अधिकार पा सकी है
कि हमें भी ऊपर देना पड़ता है
तब जाकर  यहां बैठे हैं साहब

कितने ही खेत चिल्ला रहे हैं
"बागड़ हमारी फसल खा गई साहब ! "
वे फसलभक्षी बागड़ों से ही बागड़ों की शिकायत कर रहे हैं।
जिसे कोई नहीं सुन रहा है
अमानवीय और बहरे हो गए अंधड़ में
कौन किसकी सुनता है?

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                     ।। जागरण ।।

नींदों को समन्दरों में डुबोकर
रहना है रातभर सफ़र में
काली रातों और बिगड़ैल दिनों के खिलाफ़
न्याय के सूरज को लाने के लिए
विश्राम को तिलांजलि देते हुए
वर्जित है ऊँघना समय की इस ऊँची चट्टान पर

अमानवीय खाइयों को पाटकर
विश्वास के पुल की बहाली के लिए
क्रियाशील रहना होगा आँखों से खुमारी उतारकर

नींदों के सपनों से निकल
दैत्य अब प्रत्यक्ष सामने आकर हमलावर हो गए है
अपनी संचित ऊर्जा को एकत्र कर
इनकी नाभि में शर संधान करके
इनके विश्व विजयी होने के दम्भ को चूर करते हुए
अमृत कुंड सोखकर इन्हें धराशाही करने का
माक़ूल वक़्त है ये

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।। बुद्धा सिंह की तलाश ।।

रेल्वे की टिकिट खिड़की के पास चिपका है
बुद्धा सिंह की तलाश का पर्चा

नाम बुद्धा सिंह
उम्र सत्तर साल
हुलिया पर्चे में छपी फोटो मुताबिक

हाथ में बुद्धा सिंह गुदवाई द्वारा लिखा है
शरीर इकहरा
स्वभाव सीधा साधा
थाना केन्ट ,गुना

पता देने वाले को उचित इनाम दिया जायेगा।
नीचे लिखे मोबाइल नम्बर पर सूचना दें

आँखों में विश्वास और चेहरे पर मुस्कान लेकर
आखिर कहां चला गया बुद्धा सिंह
या भाग गया परिजनों से नाराज़ होकर
अथवा फसल बर्बादी और कर्ज़ के बोझ से दबकर
गले के गमछे से फंदा बना कर
किसी पेड़ की डाली से झूल तो नहीं गया बुद्धा सिंह

आशंकाओं के अंधड़ के बीच
आखिर शुकूनदायी है
बुद्धा सिंह की तलाश का यह पर्चा
जो समय की दीवार पर उम्मीदों की तरह चिपका है
कि आख़िर सत्तर साल के बूढ़े  बुद्धा सिंह की ज़रूरत
परिजनों को ही सही पर किसी को है तो सही।

*****
     
         ।।  माँ  ।।

मनुष्यता की उर्वरा धरती पर
तुम करुणा और वात्सल्य के
दो पय पर्वत हो माँ !

पानी से भरे हुए बादलों को
पृथ्वी पर बरसाने के लिए
तुम उनमें ज़रूरी हो गए  अनगिनित छिद्र हो

दुःख सुख और प्रेम में
सबसे पहले बरसने वाली
पृथ्वीनुमा गोल दो बोलती आँखें हो

संघर्षों के सूरज के झुलसाते ताप से
जीवन की धरा को बचाने वाली
सूरज और पृथ्वी के बीच तनी हुई
सफेद इच्छाओं वाली
काली सघन और मजबूत  विस्तार में फैली हुई
अनन्त केश राशि हो तुम माँ !

****

                ।।धरती-आकाश।।

जब गर्मी होती है असहनीय
धरती आकाश के भरोसे मौसम से हारती नहीं
उसके जेहन में बरसात का सुन्दर सपना होता है

काले बादलों के शरीर में हरियाली के बीज हैं
जिसे धरती अपनी कोख में धारण कर लेगी
धरती का गर्भाशय सृजन की सारी विधाओं का आधार है

धरती को देखते हुए आकाश
आश्वासन की मधुर मुस्कान बिखेरता है
और धरती आकाश से नजरें मिलाती हुई
अपनी उमस को अनदेखा करती है

हवाएं बदलाव के गीत गा रही हैं
और धरती की त्वचा पर घास के रोंगटे खड़े हो गए हैं
                   - सुरेन्द्र रघुवंशी

सुरेन्द्र रघुवंशी

जन्म- 2 अप्रैल सन 1972
गनिहारी , जिला अशोकनगर मध्यप्रदेश में
शिक्षा- हिंदी साहित्य , अंग्रेजी साहित्य और राजनीति विज्ञान में स्नातकोत्तर ।
आकाश वाणी और दूरदर्शन से काव्य पाठ
देश की प्रमुख समकालीन साहित्यिक पत्रिकाओं ' समकालीन जनमत' , ' कथाबिम्ब' , ' कथन' , 'अक्षरा' , 'वसुधा' , ' युद्धरत आम आदमी' , 'हंस' , 'गुडिया' , ' वागर्थ', ' साक्षात्कार' , ' अब' , 'कादम्बिनी' , ' दस्तावेज' , ' काव्यम' , ' प्रगतिशील आकल्प' ' सदानीरा' ' समावर्तन ' एवं वेब पत्रिकाओं ' वेबदुनिया' , ' कृत्या' सहित देश की तमाम प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में
कविताएँ , कहानी, आलोचना प्रकाशित ।
मध्य प्रदेश साहित्य अकादमी द्वारा ' जमीन जितना' काव्य संकलन प्रकाशित
दूसरा काव्य संकलन 'स्त्री में समुद्र'
तीसरा काव्य संकलन ' पिरामिड में हम ' ।
शिक्षक आन्दोलन से गहरा जुडाव
विभिन्न जन आन्दोलनों में सक्रिय भागीदारी
अपने नेतृत्व में मध्य प्रदेश में 11000/- सरकारी शिक्षकों की सर्वोच्च न्यायालय के माध्यम से नियुक्ति ।
मध्य प्रदेश शासन के स्कूल शिक्षा विभाग में शिक्षक के रूप में कार्यरत ।
विभिन्न सामाजिक और मानवीय सरोकारों के विषयों पर विभिन्न मंचों से व्याख्यान ।
कुछ कविताओं का अंग्रेजी और फिलीपीनी टेगालोग भाषा एवं मराठी , गुजराती एवं मलयालम आदि भारतीय भाषाओँ में अनुवाद ।
कविता कोष में कविताएँ शामिल ।
हिंदुस्तान टाइम्स डॉट कॉम और नवभारत क्रॉनिकल का संयुक्त बोल्ट अवार्ड ।
एयर इंडिया का रैंक अवार्ड ।
मानवाधिकार जन निगरानी समिति में रास्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य के रूप में कार्य ।
प्रांतीय अध्यक्ष मध्य प्रदेश राज्य शिक्षक उत्थान संघ
जनवादी लेखक संघ में प्रांतीय संयुक्त सचिव (म. प्र.)
एडमिन/ सम्पादक-
'सृजन पक्ष' -वाट्स एप दैनिक एवं फेसबुक साहित्यिक पत्रिका
'जनवादी लेखक संघ'- फेसबुक साहित्यिक पत्रिका
'जनपक्ष'- फेसबुक साहित्यिक ग्रुप           'नई किताब नई पत्रिका'- फेसबुक समूह
संपर्क -महात्मा बाड़े के पीछे , टीचर्स कॉलोनी अशोक नगर मध्य प्रदेश, 473331 ।
मोबाईल 09926625886
email-surendraganihari@gmail.com
srijanpaksh@gmail.com

सोमवार, 19 जून 2017

सन्तोष तिवारी की कविताऐं

संन्तोष तिवारी:

*नंदिग्राम में भरत*
.........................

निरा ऐकान्तिक स्थल
नंदिग्राम में
अहर्निश ध्यानमग्न
व्रतधारी वह योगी
तपाए कंचन सा दीप्तमान कुटिया में
मुद्रा पद्मासन
रट रहा...राम राम

यह तो विक्षिप्त अयोध्या की थाती है
रामानुज भरत की जय हो|
..........

*दो*

हे राम! तुम्हारे अयोध्या त्यागते ही
कल- कल बहती सरयू को
काठ मार गया
महाअपशकुन!! टूट टूटकर गिरने लगे तारे
अयोध्या की किस्मत में
अमावस ही अमावस

भरत का गला रुँध गया  है
वे दसों दिशाओं में टेर लगा रहे

अब राम कहाँ लौट कर आने वाले थे
राम की राह देखते देखते
अयोध्या की आँखें पथरा गयीं|
़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़

युवा कवि सन्तोषकुमार तिवारी की कविताओं की दो किताबें...फिलहाल सो रहा था ईश्वर एवं अपने अपने दण्डकारण्य (ऑनलाइन) आ चुकी है | ये राजकीय इंटर कालेज..नैनीताल में प्रवक्ता हिन्दी पद पर सेवारत हैं |
अयोध्या में पैदा हुए कवि की सात लक्ष्य कविताएं आप सबकी नजर है|

..........
*पर्वतारोही*

पर्वतों पर रहने वाले लोग
सभी पर्वतारोही नहीं होते
पार करते ही रहते परिन्दे पहाड़ों- पर्वतो को
परिन्दे पर्वतारोही नहीं कहलाते
........

अपनी अपनी भूख
................

एक भूखा
दूसरे भूखे से कहता है
मुझे रोटी चाहिये
दूसरा उसे हिकारत से देखते हुए बोला
भूखा तो मैं भी बहुत हूँ
मुझे पूरी धरती
समूचा आसमान चाहिये|
...........

*बची रही पृथ्वी तो....*

हवा
पानी
और हरापन यदि बचा रहा
तभी बची रह सकेगी पृथ्वी
बचा रहेगा
जीने के वास्ते आक्सीजन|
..............

*बूढ़ी गाय*

शहर जैसी रौनक गायब है
अयोध्या के चेहरे से
बूढ़ी गाय के सूखे थन जैसी अयौध्या
अब पाँच साला वैतरणी पार का
खोलती है रास्ता|
..............

*जूता*

कुछ लोग जूतें में
पाँव नहीं
गर्दन डाल देते हैं
वे ऐसा हड़बड़ी मे नहीं करते |
..........
मेरी नजर में तो
दुख सुख दोनों
पैर के दोनों जूते हैं|
........

*तुमने ऐसा क्यों कहा होगा?*

जाने क्यों
तुमने ऐसा क्यों कहा होगा
प्यार आया है
मैं सारे काम-धाम छोड़
आँगन से चौपाल तक
देख आयी, एक जैसा सन्नाटा था
मैं जान गयी तुम शरारती ही नहीं
झूठे भी हो|
............

*चीख सुनायी नहीं पड़ती जब*

ऐसा अक्सर तो नहीं
कभी - कभी सभी के साथ होता है
जब हमें चीख सुनती तो साफ है
परंतु हम अनसुना कर देते हैं
हमे लहूलुहान आदमी का
छटपटाना विचलित नहीं करता
क्या करेंगे साब! खामोशी का तो आलम ये है
कुछ लोग समर में लड़ते हुए नहीं
नींद में मर जाते हैं|
...............

.....

*आम्रपाली की यादों में बुद्ध*
**********************
*एक*

कोई यत्न नहीं किया बुद्ध ने
बस, छूटता गया सब
मुट्ठी में रेत कहीं ठहरता है?

बुद्ध की ताकत रिक्तता है|
.........

*दो*

तुम्हें याद है क्या
कितने अपमान
कितनी ठोकरें
कितने हमले और
कितना ताप, शीत और बरसात तुमने झेले....
निस्संग रहे फिर भी|

बुद्ध का पूँजी तो मौन है
वे चोट का हिसाब कहां तक रखें
और क्योंकर रखें

उनके पास तो
यात्राओं के किस्से और नगरवधू
आम्रपाली की प्रेमपूर्ण यादें हैं|
............

*तीन*

ध्वनियों के पार जा चुके बुद्ध
कभी श्लोकों के अन्वय में उलझे नहीं दिखे|

मौन रहकर मृत्यु का
जश्न मनाना सिर्फ़
उन्हीं को आता है|
+++++++++++++++++

*सन्तोषकुमार तिवारी*
*प्रवक्ता, राजकीय इण्टर कॉलेज, ढिकुली( नैनीताल)*
*09456137315*
*09411759081*

रेखाचित्र...अनुप्रिया